Saturday 24 September 2016

ख़त्म होती इंसानियत

insaniyat
आधुनिकतावाद के इस दौर में जहाँ आज के इंसान ने रुपियों – पैसो को ही अपना दीन – ईमान बना रखा है, जहाँ ऐशो – आराम के साधनो को अपने लिए ही बनाना आज के भौतिकवादी मनुष्य का ख़ास उद्देश्य बन गया है, इंसानियत कहाँ तक गिर चुकी है, ज़मीर कहाँ तक आज के इंसान का ख़त्म हो चुका है, उसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है ।
कोई सड़क पर दुर्घटना – ग्रस्त होकर तड़प रहा है, बेहोश पड़ा है – उसे संभालने, उसकी मदद इंसान ही कर सकता है, लेकिन आज का इंसान गाडी की रेस बढाकर ऐसे निकल जाता है, जैसे कुछ देखा ही नहीं ।
कितनी गिर चुकी है इंसानियत !
आज का इंसान पैसे के लिए भाई – भाई को, बेटा – बाप को ख़त्म कर रहा है । इंसानी रिश्ते दिन – ब -दिन तार – तार हो रहे हैं । ज़रा सोचिये, वो भाई जो एक ही माँ के पेट से पैदा हुए हों, जिनकी रगों में एक ही खून दौड़ रहा हो, एक ही आँगन में खेलते – खेलते बड़े हुए हों, वो दौलत के चंद टुकड़ों के लिए एक – दूसरे को ख़त्म कर देते हैं ।
क्या इंसानियत इससे भी नीचे गिर सकती है ?
समाज के वो लोग जिन्हें समाज में मुखिया कहा जाता है और जिनमे अभी इंसानियत ज़िंदा है और जो दूसरों के हमेशा काम आते हैं वो लोग आगे चल कर रसातल की ओर जा रहे समाज को रोकें वरना एक दिन ऐसा आएगा कि हर घर में बर्बादी का आलम होगा । लोग नशे के ग़ुलाम हो जायेंगे और खासकर नौजवान पीढ़ी का बुराई से जुड़ने पर जो अराजकता का आलम होगा,उसकी कल्पना भी मुमकिन नहीं । समाज से बुराई को ख़त्म करने के लिए, समाज को साफ़ – सुथरा बनाने के लिए सभी समाज – सेवी बुराई के खिलाफ एक जुट हो कर अभियान चलाएं ताकि ख़त्म हो रही इंसानियत को ज़िंदा रखा जा सके ।.

ज़िन्दगी में रिश्तों का महत्व

rishta
शिशु  जन्म के साथ ही अनेक रिश्तों के बंधन में बंध जाता है और माँ-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी जैसे अनेक रिश्तों को जिवंत करता है। रिश्तों के ताने-बाने से ही परिवार का निर्माण होता है। कई परिवार मिलकर समाज बनाते हैं और अनेक समाज सुमधुर रिश्तों की परंपरा को आगे बढाते हुए देश का आगाज करते हैं। सभी रिश्तों का आधार संवेदना होता है, अर्थात सम और वेदना का यानि की सुख-दुख का मिलाजुला रूप जो प्रत्येक मानव को धूप – छाँव की भावनाओं से सराबोर कर देते हैं। रक्त सम्बंधी रिश्ते तो जन्म लेते ही मनुष्य के साथ स्वतः ही जुङ जाते हैं। परन्तु कुछ रिश्ते समय के साथ अपने अस्तित्व का एहसास कराते हैं। दोस्त हो या पङौसी, सहपाठी हो या सहर्कमी तो कहीं गुरू-शिष्य का रिश्ता। रिश्तों की सरिता में सभी भावनाओं और आपसी प्रेम की धारा में बहते हैं। अपनेपन की यही धारा इंसान के जीवन को सबल और यथार्त बनाती है, वरना अकेले इंसान का जीवित रहना भी संभव नही है। सुमधुर रिश्ते ही इंसानियत के रिश्ते का शंखनाद करते हैं।
इंसानी दुनिया में एक दूसरे के साथ जुङाव का एहसास ही रिश्ता है, बस उसका नाम अलग-अलग होता है। समय के साथ एक वृक्ष की तरह रिश्तों को भी संयम, सहिष्णुता तथा आत्मियता रूपी खाद पानी की आवश्यकता होती है। परन्तु आज की आधुनिक शैली में तेज रफ्तार से दौङती जिंदगी में बहुमुल्य रिश्ते कहीं पीछे छुटते जा रहे हैं। Be  PRACTICAL की वकालत करने वाले लोगों के लिए रिश्तों की परिभाषा ही बदल गई है। उनके लिए तो न बाप बङा न भैया सबसे बङा रूपया हो गया है।
किसी भी रिश्ते में धूप-छाँव का होना सहज प्रक्रिया है किन्तु कुछ रिश्ते तो बरसाती मेंढक की तरह होते हैं, वो तभी तक आपसे रिश्ता रखते हैं जबतक उनको आपसे काम है या आपके पास पैसा है।  उनकी डिक्शनरी में भावनाओं और संवेदनाओं जैसा कोई शब्द नही होता। ऐसे रिश्ते मतलब निकल जाने पर इसतरह गायब हो जाते हैं, जैसे गधे के सर से सिंग। परन्तु कुछ लोग अनजाने में ही इस तरह के रिश्तों से इस तरह जुङ जाते हैं कि उसके टूटने पर अवसाद में भी चले जाते हैं। कुछ लोग रिश्तों की अनबन को अपने मन में ऐसे बसा लेते हैं जैसे बहुमुल्य पदार्थ हो। मनोवैज्ञानिक मैथ्यु सेक्सटॉन कहते हैं किः-   इंसानी प्रवृत्ति होती है कि मनुष्य, रिश्तों की खटास और पीढा को  अपने जेहन में रखता है और उसका पोषण करता है। जिसका मनुष्य के स्वास्थ पर बुरा असर पङता है। इस तरह की नकारात्मक यादें तनाव बढाती हैं। तनाव से शरीर में ‘कार्टीसोल’ नामक हार्मोन स्रावित होता है, जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को कम करता है। परिणाम स्वरूप मनुष्य कई बिमारियों से ग्रसित हो जाता है।  युवावर्ग को खासतौर से ऐसे रिश्तों से परहेज करना चाहिए जो अकेलेपन और स्वार्थ भावनाओं की बुनियाद पर बनते हैं क्योंकि ऐसे रिश्ते दुःख और तनाव के साथ कुंठा को भी जन्म देते हैं।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है किः-
“जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नही है,  पर जो रिश्ते हैं उनमें जीवन होना जरूरी है।”
रिश्तों का जिक्र हो और पति-पत्नी के रिश्तों की बात न हो ये संभव नही है क्योंकि ये रिश्ता तो पूरे परिवार की मधुरता का आधार होता है। इस रिश्ते की मिठास और खटास दोनो का ही असर बच्चों पर पङता है।  कई बार ऐसा होता है कि, छोटी-छोटी नासमझी  रिश्ते को कसैला बना देती है। जबकि पति-पत्नी का रिश्ता एक नाजुक पक्षी की तरह  अति संवेदनशील होता है। जिसे अगर जोर से पकङो तो मर जाता है, धीरे से पकङो अर्थात उपेक्षित करो तो दूर हो जाता है। लेकिन यदि प्यार और विश्वास से पकङो तो उम्रभर साथ रहता है।
कई बार आपसी रिश्ते जरा सी अनबन और झुठे अंहकार की वजह से क्रोध की अग्नी में स्वाह हो जाते हैं। रिश्तों से ज्यादा उम्मीदें और नासमझी से हम में से कुछ लोग अपने रिश्तेदारों से बात करना बंद कर देते हैं। जिससे दूरियां इतनी बढ जाती है कि हमारे अपने हम सबसे इतनी दूर आसमानी सितारों में विलीन हो जाते हैं कि हम चाहकर भी उन्हे धरातल पर नही ला सकते और पछतावे के सिवाय कुछ भी हाँथ नही आता।
किसी ने बहुत सही कहा हैः-  “यदि आपको किसी के साथ उम्रभर रिश्ता निभाना है तो, अपने दिल में एक कब्रिस्तान बना लेना चाहिए। जहाँ सामने वाले की गलतियों को दफनाया जा सके।”
कोई भी रिश्ता आपसी समझदारी और निःस्वार्थ भावना के साथ परस्पर प्रेम से ही कामयाब होता है। यदि रिश्तों में आपसी सौहार्द न मिटने वाले एहसास की तरह होता है तो, छोटी सी जिंदगी भी लंबी हो जाती है। इंसानियत का रिश्ता यदि खुशहाल होगा तो देश में अमन-चैन तथा भाई-चारे की फिजा महकने लगेगी। विश्वास और अपनेपन की मिठास से रिश्तों के महत्व को आज भी जीवित रखा जा सकता है। वरना गलत फहमी और नासमझी से हम लोग, सब रिश्ते एक दिन ये सोचकर खो देंगे कि वो मुझे याद नही करते तो मैं क्यों करूं…………………..
आजकल की व्यस्त जिंदगी में लोगों के पास समय कम है। इसके कारण रिश्तों की गर्मजोशी भी कम होती जा रही है। लोग आजकल अपने आपमें इतने मशगूल रहते हैं कि उन्हें आसपास अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों तक का एहसास नहीं रहता। ऐसे में आपसी रिश्तों में फिर से मजबूती के लिए हम आपको कुछ टिप्स बताते हैं:
एक-दूसरे को समझें
रिश्तों में गर्माहट लाने के लिए जरूरी है कि एक-दूसरे की जरूरतों को समझा जाए। कभी-कभी कुछ कारणों से दोनों में से किसी एक को लगने लगता है कि दूसरा उसे नजरअंदाज कर रहा है। जरूरी है कि ऐसी भावनाओं को पनपने न दें। अगर अपने साथी की इच्छाओं की कद्र करेंगे, तो आपके रिश्ते की डोर और मजबूत होगी।
विश्वास मजबूत करें
किसी भी रिश्ते को विश्वास मजबूत आधार देता है। अगर आपकी अपने साथी से बेहतर बन नहीं रही, तो कहीं न कहीं इसके पीछे विश्वास का कम होना भी है। अपने पार्टनर के प्रति विश्वास पक्का करें। कभी-कभी लगता है कि साथी के स्वभाव में बदलाव हो रहा है, लेकिन यह महज परिस्थितवश भी हो सकता है।
बाधा न बनें
हर आदमी के स्वभाव में भिन्नता होती है। उसकी यह भिन्नता उसे दूसरों से अलग पहचान प्रदान करती है। ऐसे में कभी-कभी कुछ चीजों के नजरिए को लेकर आपस में विरोधाभास की स्थिति बन जाती है। अपने साथी के ऐसे विशिष्ट गुण को पहचानने की कोशिश करें।
समय व्यतीत करें
अपने बिजी शेडय़ूल से कम से कम दिन में एक बार कुछ लम्हे साथ बिताएं। बातें शेयर करें। एक-दूसरे की तकलीफों के भागीदार बनें। उस दिन सारी उलझनों और दिक्कतों को एक तरफ रख दें। महीने में कम से कम एक बार आउटिंग या पिकनिक पर जाएं।
जिम्मेदारी समझें
अकसर हम व्यस्तता के कारण पारिवारिक जिंदगी को प्राथमिकता देना बंद कर देते हैं जो कलह पैदा करती है। अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों पर बराबर ध्यान दें। अपने बच्चों की पढ़ाई व घर की जरूरतों पर निगाह रखें।
“कोई टूटे तो उसे सजाना सिखो,
          कोई रूठे तो उसे मनाना सिखो,
                    रिश्ते तो मिलते हैं मुकद्दर से,
                              बस उसे खूबसूरती से निभाना सिखो।”

Wednesday 21 September 2016

नशा एक अभिशाप

smoking-kills
नशा एक अभिशाप है । यह एक ऐसी बुराई है, जिससे इंसान का अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है । नशे के लिए समाज में शराब, गांजा, भांग, अफीम, जर्दा, गुटखा, तम्‍बाकु और धूम्रपान (बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, चिलम) सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर जैसे घातक मादक दवाओं और पदार्थों का उपयोग किया जा रहा है । इन जहरीले और नशीले पदार्थों के सेवन से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हानि पहुंचने के साथ ही इससे सामाजिक वातावरण भी प्रदूषित होता ही है साथ ही स्‍वयं और परिवार की सामाजिक स्थिति को भी भारी नुकसान पहुंचाता है । नशे के आदी व्यक्ति को समाज में हेय की दृष्टि से देखा जाता है । नशे करने वाला व्‍यक्ति परिवार के लिए बोझ स्वरुप हो जाता है, उसकी समाज एवं राष्ट्र के लिया उपादेयता शून्य हो जाती है । वह नशे से अपराध की ओर अग्रसर हो जाता है तथा शांतिपूर्ण समाज के लिए अभिशाप बन जाता है । नशा अब एक अन्तराष्ट्रीय विकराल समस्या बन गयी है । दुर्व्यसन से आज स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग और विशेषकर युवा वर्ग बुरी तरह प्रभावित हो रहे है । इस अभिशाप से समय रहते मुक्ति पा लेने में ही मानव समाज की भलाई है । जो इसके चंगुल में फंस गया वह स्वयं तो बर्बाद होता ही है इसके साथ ही साथ उसका परिवार भी बर्बाद हो जाता है । आज कल अक्सर ये देखा जा रहा है कि युवा वर्ग इसकी चपेट में दिनों-दिन आ रहा है वह तरह-तरह के नशे जैसे- तम्बाकू, गुटखा, बीडी, सिगरेट और शराब के चंगुल में फंसती जा रही है । जिसके कारण उनका कैरियर चौपट हो रहा है । दुर्भाग्य है कि आजकल नौजवान शराब और धूम्रपान को फैशन और शौक के चक्कर में अपना लेते हैं । इन सभी मादक प्रदार्थों के सेवन का प्रचलन किसी भी स्थिति में किसी भी सभ्य समाज के लिए वर्जनीय होना चाहिए ।
Nasha Mukti
जैसा कि हम सभी जानते हैं धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । इससे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी होती है और यह चेतावनी सभी तम्बाकू उत्पादों पर अनिवार्य रूप से लिखी होती है, और लगभग सभी को यह पता भी है । परन्तु लोग फिर भी इसका सेवन बड़े ही चाव से करते हैं । यह मनुष्य की दुर्बलता ही है कि वह उसके सेवन का आरंभ धीरे-धीरे करता है पर कुछ ही दिनों में इसका आदी हो जाता है, एक बार आदी हो जाने के बाद हम उसका सेवन करें, न करें; तलब ही सब कुछ कराती है ।
समाज में पनप रहे विभिन्न प्रकार के अपराधों का एक कारण नशा भी है । नशे की प्रवृत्ति में वृध्दि के साथ-साथ अपराधियों की संख्या में भी वृध्दि हो रही है । नशा किसी भी प्रकार का हो उससे शरीर को भारी नुकसान होता है, पर आजकल के नवयुवक शराब और धूम्रपान को फैशन और शौक के लिए उपयोग में ला रहे हैं । यहां तक की दूसरे व्यक्तियों द्वारा ध्रूमपान करने से भी सामने वाले व्यक्ति के फेफड़ों में कैंसर और अन्य रोग हो सकते हैं । इसलिए न खुद धूम्रपान करें और न ही किसी को करने दें । कोकीन, चरस, अफीम ऐसे उत्तेजना लाने वाले पदार्थ है जिसके प्रभाव में व्यक्ति अपराध कर बैठता है । इनके सेवन से व्यक्ति पागल तथा सुप्तावस्था में हो जाता है । इसी तरह तंबाखू के सेवन से तपेदिक, निमोनिया और सांस की बीमारियों सहित मुख फेफडे और गुर्दे में कैंसर होने की संभावनाएं रहती हैं । इससे चक्रीय हृदय रोग और उच्च रक्तचाप की शिकायत भी रहती है ।
डॉक्टरों का कहना है कि शराब के सेवन से पेट और लीवर खराब होते हैं । इससे मुख में छाले पड़ सकते हैं और पेट का कैंसर हो सकता है । पेट की सतही नलियों और रेशों पर इसका असर होता है, यह पेट की अंतड़ियों को नुकसान पहुंचाती है । इससे अल्सर भी होता है, जिससे गले और पेट को जोड़ने वाली नली में सूजन आ जाती है और बाद में कैंसर भी हो सकता है । इसी तरह गांजा और भांग जैसे पदार्थ इंसान के दिमाग पर बुरा असर डालते हैं । इन सभी मादक द्रव्यों से मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचने के साथ-साथ समाज, परिवार और देश को भी गंभीर हानि सहन करनी पड़ती है । किसी भी देश का विकास उसके नागरिकों के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है, लेकिन नशे की बुराई के कारण यदि मानव स्वास्थ्य खराब होगा तो देश का भी विकास नहीं हो सकता । नशा एक ऐसी बुरी आदत है जो व्यक्ति को तन-मन-धन से खोखला कर देता है । इससे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जाती है । इस बुराई को समाप्त करने के लिए शासन के साथ ही समाज के हर तबके को आगे आना होगा । यह चिंतनीय है कि जबसे बाजार में गुटका पाउच का प्रचलन हुआ है, तबसे नशे की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है । आज बच्चे से लेकर बुजुर्ग भी गुटका पाउच के चपेट में है ।
————————-: जरा इस ओर ध्‍यान देवें :————————-
     :- शराब पीने वाले व्यक्ति का 50/- रु. रोज का खर्च मानकर चलें, तो एक महीने का 1,500/- रु. व सालभर में 18,000/- रु. होते हैं । एक व्यक्ति अपने जीवन भर में 50 वर्ष शराब का सेवन करता है तो 9,00,000/- रु. (नौ लाख) फिजूल खर्च कर देता है ।
:- सिर्फ एक साल की बचत 18000/- रु. पोस्ट ऑफिस में फिक्स (किसान विकास-पत्र) जमा कराने से 42 वर्ष, 11 महीने तक रिन्यू कराते रहने पर यह रकम 5,76,000/- रु जमा हो जाती है । जो आपकी जिन्दगी के लिए पेन्शन या बच्चों की शिक्षा के काम आ सकती है ।
:- बीड़ी पीने वाले व्यक्ति का बीड़ी व माचिस का कम से कम रोजाना का खर्च 10/- रु माने, तो एक महिने में 300/- रु सालभर में 3,600/- रु होते है । 50 वर्ष का हिसाब लगावें तो 1,80,000/- रु फिजूल खर्च में राख हो जाते है तथा कैंसर को न्योता! देते है ।
:- गुजरात में तम्बाकू व गूटखे के सेवन से 32 हजार व्यक्ति हर वर्ष मरते है, कारण है, कैंसर ।
:- अकेले भारत में एक दिन में 11 करोड़ की सिगरेट पी जाते है । इस तरह एक वर्ष में 50 अरब रु का धुंआ हो जाता है तथा कैंसर को निमंत्रण !
ये कैसी विडम्बना है कि सामाजिक हितो से सम्बन्धित तमाम मुद्दो व उससे जुड़े नकारात्मक प्रभावो पर हमारी सरकारे व सामाजिक सँगठन बहुत जोर शोर से आवाज उठाते हुए कुछ मसलो पर आन्दोलन तक छेड़ देते है परन्तु आये दिन इस तरह की होने वाली घटनाओ पर कभी भी कोई सामाजिक संगठन या राजनीतिक दल न आवाज उठाते है और न ही इस गम्भीर समस्या के निदान की ब्रहद स्तर पर कोई पहल करते है । कुछ जागरुक व जिम्मेवार नागरिक स्थानीय स्तर पर कही कही कुछ थोड़े प्रयास जरुर करते रहते है लेकिन वे इस बुराई को जड़ से मिटाने मे कभी भी पूर्ण समर्थ नही हो पाते ।
सबसे पहले हमे शराब से होने वाले सामाजिक दुःष्प्रभाव व उससे होने वाले धन जन की हानि के विषय मे विचार करना चाहिए । शराब का सेवन विभिन्न प्रकार से समाज के विभिन्न प्रकार के लोगों द्वारा किया जाता रहा है कुछ लोगों के लिए शराब का सेवन अपनी सोसाइटी मे दिखावे के लिए किया जाता है ऐसे लोग अच्छे ब्राण्ड की शराब का सेवन करते है तथा दिन मे किसी एक समय या फिर कभी कभी कुछ अवसरों पर करते है । आर्थिक रुप से सुद्रढ़ ये वर्ग सिर्फ मौज मस्ती के लिए ऐसा करते है । मध्यमवर्गीय व निम्नवर्गीय लोगों के लिए मधपान करने के अनेको कारण होते है, जिनके विषय मे प्रायः हम सभी जानते है कुछ लोग शौकिया पीने लगते है तो कुछ लोग संगत के असर से । कुछ लोग सीमित व सँतुलित रहते हुए समाज मे अपनी इस आदत को छिपाये रखते है तो कुछ लोग अतिरेकता मे बहकते हुए स्वच्छन्द हो जाते है ऐसे लोग एक बार जब सामाजिक मर्यादा की सीमाओ का उल्लघन कर देते है तो फिर वे समाज की मुख्यधारा से कटते चले जाते है ।
शौकिया तौर पर लती हुए लोग जब आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते है तो स्थिति भयावह रुप ले लेती है खुद का रोजगार तो प्रभावित होता ही है प्राइवेट फाइनेन्सरो के जाल मे फँस कर कर्जदार तक हो जाते है और तब उनका ये शराब रुपी नशे का “रोग ” गम, उलझन व परेशानी से मुक्ति पाने की “दवा” भी बन जाता है । इस अवस्था मे ऐसे लोग गहरे अँधियारे मे धँसते चले जाते है । उन्हे शराब मे ही हर समस्या का समाधान दिखायी देता है । ऐसे मुश्किल क्षणो मे जब कोई करीबी उन्हे समझाने बुझाने व सुधारने के अतिरिक्त प्रयास करता है तो अक्सर उन्नाव जैसी घटना हो जाती है ।
ऐसे लोगो पर समाज का दखल व असर नही होता क्योकि अक्सर लोगो के समझाने पर ये लोग सिर्फ एक ही जुमले का प्रयोग करते है ,” तुम्हारे बाप का पीते है क्या ” और तब हर स्वाभिमानी व्‍यक्ति ऐसे लोगो से दूर रहने मे ही अपनी भलाई समझता है । इन परिस्थितयो मे भुक्तभोगी परिवार पूरे समाज से अलग थलग पड़ जाता है कोई उनका दुःख सुनने वाला नही होता । निकट रिश्तेदार आखिर कितने दिनो तक करीब रहते हुए उनकी मदद कर सकते है ।
सबसे खराब स्थिति उन बच्चो की होती है जो बालिग नही होते, माँ बाप की रोज की किच किच का उनके अर्न्तमन मे बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है ,ऐसे बच्चे मानसिक रुप से अन्य बच्चो की अपेक्षा पिछड़ जाते है घर का अच्छा माहौल न मिलने से उनमे दब्बूपन आ जाता है और वे हमेशा डरे डरे से रहते है अपने सहपाठियो से खुलकर बात नही कर पाते शिक्षक के समक्ष अपरोधबोध से ग्रसित व सहमे सहमे रहते है एक अँजान डर के कारण पढ़ा लिखा कुछ भी पल्ले नही पड़ता, हम हमारा समाज व सरकारे क्या कभी ऐसे लोगो के दुःख दर्द व मानवाधिकार से सम्बन्धित विषयो पर गौर करता है या फिर गौर करेगा ?
मेरा तो शाशन और प्रशाशन से ये अनुरोध है कि आखिर हम पूर्ण शराब बँदी क्यो नही लागू करते, जिस वस्तु से हमारा समाज दिन प्रतिदिन विषैला होता जा रहा हो उसका क्यो न हम पूर्ण तिलाँजलि कर दे कुछ गरीब परिवारो की जड़ो को खोखला करके हम अमीरो को और अमीर करके क्या हासिल करना चाहते है । अमीर व सँम्पन्न लोग ऐसा नशा खुद की कमाई से न करके इधर उधर के पैसो से करते है जब कि आम आदमी अपने खून पसीने के पैसो व उसके पश्चात जर जमीन बेँच कर नशा करते है और जब वह भी नही होता तो आम नागरिको के यहाँ लूटपाट करके समाज मे और विषम स्थिति पैदा करते रहते है ।
किसी भी तरह के नशे से मुक्ति के लिए सिर्फ एक ही उपाय है वह है संयम वैसे तो संयम कई समस्याओं का समाधान है लेकिन जहां तक नशामुक्ति का सवाल है संयम से बेहतर और कोई दूसरा विकल्प नहीं है हाँ सेल्फ मोटिवेशन भी नशामुक्ति में बेहद कारगर है या फिर किसी को मोटिवेट करके या किसी के द्वारा मोटिवेट होके भी नशे से मुक्त हुआ जा सकता है लेकिन यदि तम्बाकू का नशा करने वाला यदि संयम अपनाए तो इस पर जीत हासिल कर सकता है जब कभी तम्बाकू का सेवन करने की तीव्र इच्छा हो तो संयम के साथ अपना ध्यान किसी अन्य काम में लगा लें ज़्यादातर तम्बाकू को भुलाने की कोशिश करें वास्तव में यदि व्यक्ति हितों के प्रति जागरुक हैं तो वह किसी भी नशे की चपेट में आ ही नहीं सकता और यदि आ भी जाए तो थोडा सा संयम और सेल्फ मोटिवेशन उसे इस धीमे ज़हर से मुक्त कर सकता है । तम्बाकू और इसके घातक परिणामो से हम अपने करीबी और अपने मित्रों को परिचित करायें यदि कोई आपका करीबी तम्बाकू या किसी नशे की लत का शिकार है तो उसे मोटिवेट करके उसे संयम का रास्ता बताएं और नशे से मुक्त होने में उसकी मदद करें ।
व्यसनों से मुक्ति पाने के लिए नशे करने वाले साथियों से अधिक से अधिक दूर रहें ।, मेहमानों का स्वागत नशे से न करें । घर में या जेब में बीड़ी-सिगरेट न रखें ।, बच्चों के हाथ बाजार से नशीली वस्तुएं न मंगवाएं, स्वयं को किसी न किसी रचनात्मक कार्य में व्यस्त रखें ।, इसके अपने दोस्तों और पारिवारिक डॉक्टर की भी मदद लें ।, नशे से जुड़ी चीजों को दूर रखें । सबसे खास़ बात इस धीमे जहर के सेवन न करने के प्रति खुद को मोटिवेट करें ।
नशा नाश की जड़ है । नशा हर बुराई की जड़ है । इससे बचकर रहने में ही भलाई है । इन पदार्थों से छुटकारा दिलाने के लिए पीड़ित व्यक्तियों का उपचार आवश्यक है । इस दिशा में शासन के द्वारा जिला स्‍तर पर नशामुक्ति केंद्र स्थापित किए गए हैं । इन केंद्रों में मादक द्रव्य अथवा मादक पदार्थों का सेवन करने वाले व्यक्तियों को छुटकारा दिलाने के लिए नि:शुल्क परामर्श सहित उपचार किए जाते हैं । राज्य सरकार द्वारा विभिन्न सूचना तंत्रों के माध्यम से नशापान के विरूध्द लोगों में जनजागरूकता लाई जा रही है । राज्य के विभिन्न महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थानों में नशा करने से होने वाले हानि को प्रदर्शित करते हुए होर्डिंग्स लगाए गए हैं । नशे के दुष्प्रभावों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रदेश में जनसहभागिता से रैली, प्रदर्शनी, प्रतियोगिताओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और परिचर्चा आदि के आयोजन के साथ ही नशे के दुष्परिणामों को दर्शाने वाली पाम्पलेट, ब्रोसर आदि वितरित किए जा रहे हैं । नशामुक्ति के लिए 30 जनवरी को नशामुक्ति संकल्प और शपथ दिवस के रूप में मनाया जाता है । इसी प्रकार 31 मई अंतर्राष्ट्रीय धूम्रपान निषेध दिवस, 26 जून को ‘अन्तर्राष्ट्रीय नशा निवारण दिवस’, 2 से 8 अक्टूबर तक मद्यनिषेध सप्ताह और 18 दिसम्बर को मद्य निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है । पर नशे को जड़ से मिटाने के लिए हमें हर दिवस को नशामुक्ति दिवस के रूप में मनाना चाहिए ।
एक पूर्ण नशामुक्त व्यक्ति अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र की सर्वाधिक सेवा कर सकता है और राष्ट्र तथा समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है । अंत में नशा करने वालों से मेरी ये गुजारिश है कि अपने को छोड़कर एक अपने परिवार, माता, पिता, पत्नी और बच्चों का ख्याल रखते हुए ये सोचना होगा कि कल अगर आपको कुछ हो जाता है तो उनको कितना कष्ट होगा जो पूरी तरह आप पर ही आश्रित हैं । अगर आपको उनसे वास्तव में प्यार हैं । तो आपके परिवार वालों को ये न सुनना पड़े कि आप तो कुछ दिन के ही मेहमान हैं । आपका इलाज संभव नहीं है । आपके परिवार वाले डॉक्टर से पूछते हैं कि क्या ऑपरेशन से भी ठीक नहीं होगा ? तो डॉक्टर का जवाब आता है कि कहाँ-कहाँ ऑपरेशन करेंगे पूरा शरीर खोखला हो गया है । आइये प्रण करें कि जहाँ तक संभव होगा लोगों को नशे के सेवन करने से रोकेंगे । केवल और केवल व्‍यसन मुक्‍त व्‍यक्ति ही अच्‍छे समाज की रचना कर सकता है ।
धर्म विचारों सज्जनों बनो धर्म के दास ।
सच्चे मन से सभी जन त्यागो मदिरा मांस ।।

Tuesday 20 September 2016

महिला सशक्तिकरण

naari-sashaktikaran
नर से भारी नारी, एक नहीं दो-दो मात्राएं । यह कहकर कविवर दिनकर ने नारी के महत्त्व को स्पष्ट किया है । यह सच है कि नारी नर से अधिक महत्वपूर्ण है । हमारी संस्कृति में जो कुछ भी सुंदर है, शुभ है, कल्याणकारी है, मंगलकारी है, उसकी कल्पना नारी रूप में ही की गई है 1 सौंदर्य कामदेव तथा रति के मिलन में ही पूर्णतया प्राप्त करता है । धन- धान्य की देवी भी लक्ष्मी ही है । विद्या एवं कलाओं की देवी वीणावादिनी, हंसवाहिनी सरस्वती जी हैं । भगवान शिव की शक्ति का आधार शक्तिरूपिणी दुर्गा या पार्वती हैं ।
राम से पहले सीता को याद करना तथा कृष्ण से पहले राधा का नाम लिया जाना इस बात का सूचक है कि हमारे यहां नारी के महत्त्व को प्राचीन काल से ही पहचान लिया गया था । भारतीय समाज में नारी सदा से पूज्य नहीं है । कोई भी धार्मिक क्रिया नारी के बिना अधूरी मानी जाती है । भगवान राम को अश्वमेघ यज्ञ करते समय सीता की सोने की मूर्ति साथ रखनी पड़ी थी । नारी के अपमान को इस देश में क्षमा नहीं किया । रावण ने सीता का अपमान किया आज तक उसे उसके दुष्कर्म के लिए जाना जाता है तथा चौराहे पर जलाया जाता है । रावण की शक्तियां तथा उसकी तपस्या भी उसे जन-मानस के क्रोध से नहीं बचा सकी ।
दुर्योधन ने द्रोपदी का अपमान किया था जिसका नतीजा महाभारत का युद्ध था । भारत में अनुसूया और सावित्री जैसी साध्वियां भी हुई । सावित्री तो अपने पति के जीवन को वापिस लाने के लिए यमराज के द्वार तक जा पहुंची । राष्ट्र की जनसंख्या का आधा भाग नारियां हैं । जब तक नारियां उपेक्षित, शोषित एवं पिछड़ी रहेंगी तब तक देश उन्नति नहीं कर सकता । नारी किसी भी समाज को बदलने की क्षमता रखती है । आज भारत की नारी घर की चारदीवारी से निकलकर आजीविका कमाने के लिए कार्यालयों में पहुंच गई है ।
आज नारी पुरुषों पर बोझ नहीं बनती बल्कि पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है । आज भारत कइा? नारी हर व्यवसाय में उच्च पदों पर देखी जा सकती है । शिक्षा का क्षेत्र हो या सैनिक- सेवाओं का, सरकारी उद्योगों में काम करने की बात हो निजी औद्योगिक प्रतिष्ठानों की देखभाल का प्रश्न हो, सभी जगह नारियां कार्यरत दिखाई देती है । परिवार एवं नारी एक दूसरे के पर्यायवाची हैं । नारी के बिना परिवार की कल्पना असंभव है । नारी के बिना पुरुष अधूरा है । नारी के बिना घर सुना है ।
पारिवारिक सुख-समृद्धि में भी नारी की मह्त्वपूर्ण भूमिका है । नारी स्नेहमयी बहन, बेटी, ममतामयी मां तथा पत्नी के रूप में अपने सभी रिश्तों को निभाती है । बेटी के रूप में वह घर के काम- काज मैं हाथ बंटाती है । बहन बनकर वह अपने भाई की दीर्घायु की कामना करती है । बहन अपने भाई के मंगलमय जीवन की कामना करती है । संविधान में बेटी को पिता की संपत्ति में भाईयों के समान बराबर का अधिकारी बना दिया है परन्तु शायद ही कोई बहन है जो अपने अधिकार के लिए लड़ती है ।
मां के रूप में नारी के त्याग और धैर्य की सीमा को देखा जा सकता है । नारी दया, क्षमा, ममता एवं करुणा की मूर्ति है । वह उपांसुओं का समुद्र पी जाती है और उफ तक नहीं करती । पति एवं पत्नी मिलकर पारिवारिक जीवन को स्वर्ग भी बना सकते हैं । नारी घर में रहकर जो कार्य करती है, उसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती ।
नारी नौकरी भी करती है, बच्चे तथा परिवार को संभालती है, घर का काम भी करती है । मध्य युग में भारतीय नारी की प्रतिष्ठा कम हो गई थी परंतु स्वाधीनता संग्राम में नारियों के महत्त्वपूर्ण योगदान के कारण उनकी प्रतिष्ठा पुन : बड़ी । आज भारतीय समाज में नारी को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त  हैं । जीवय के सभी क्षेत्रों मैं वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है । आज अनेक उच्च पदों पर महिलाएं असिनि हैं ।
दहेज प्र था, बाल-विवाह, सती प्र था तथा विधवाओं के प्रति बुरा व्यवहार आज भी प्रचलित है । नव वधुओं को जलाने की एवं उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर करने की घटनाएं आरज भी पढ़ने एवं सुनने को मिलती हैं । इस सबके बावजूद यदि देखा जाए तो नारी की दशा में बहुत सुधार हुआ है वह अपने पिता या पति पर निर्भर नहीं है । वह पढ़- लिखकर अपने पैरों पर खड़ी है ।

Monday 19 September 2016

I love My India

हर इंसान की पहचान उसके देश से होती देश का नागरिक है। हर नागरिक को अपना देश प्यारा होता है। मेरा देश भारत है जिसका जितना भी गुणगान किया जाये कम है।
india
मेरे देश की कई विशेषताएं है जिसकी वजह से ये विश्व के जाने माने देशो के नाम में लिया जाता है। मेरे देश की संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी है। हमारा देश भारत जहां इतनी विविधतायें होने के बावजूद भी एकता, प्रेम व शांति का प्रतीक बना हुआ है, यह बहुत ही असाधारण बात है ।
जनसंख्या के नज़रिये से देखा जाये तो चीन के बाद मेरा देश भारत दूसरे स्थान पे है। मेरा देश एक सर्व-धर्म वाला देश है यहाँ हिन्दू, मुस्लिम,सिख,ईसाई,बौद्ध,जैन कई तरह के धर्म के लोग रहते है और सबको संविधान के अनुसार सामान अधिकार दिए गए है। मेरे देश में कई जातीय है जिन के कारण यहाँ बहुत तरह की भाषाएँ बोली जाती है परंतु भारत की राष्ट्रीय भाषा हिंदी है।
मेरे देश में कई तरह के रीति -रिवाज़ है। यहाँ कई महापुरषो का भी जन्म भी हुआ है। यहाँ कई प्रकार की नदियां बहती है जैसे गंगा,यमुना,सरस्वती आदि। विश्व के सात अजूबो में से आगरा का ताजमहल भी मेरे देश में ही है।
किसी समय मेरे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था परन्तु कई विदेशियों के लालच की वजह से हमारा देश कई सालो तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा रहा । लेकिन कई देशभक्तों जैसे की भगत सिंह, महात्मा गांधी आदि ने देश को आज़ाद करा दिया और आज मेरा देश विश्व राजनीती में सबसे उच्च स्थान पे है। और अपनी प्रगति के कारण एशिया में अहम स्थान रखता है।

महंगार्इ: एक समस्या

महंगार्इ आज हर किसी के मुख पर चर्चा का विषय बन चुका है। विष्व का हर देष इस से ग्रसित होता जा रहा है। भारत जैसे विकासषील देषों के लिए तो यह चिंता का विषय बनता जा रहा है।
महंगार्इ ने आम जनता का जीवन अत्यन्त दुष्कर कर दिया है। आज दैनिक उपभोग की वस्तुएं हों अथवा रिहायशी वस्तुएं, हर वस्तु की कीमत दिन-व-दिन बढ़ती और पहुंच से दूर होती जा रही है। महंगार्इ के कारण हम अपने दैनिक उपभोग की वस्तुओं में कटौती करने को विवष होते जा रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व तक जहां साग-सबिजयां कुछ रूपयों में हो जाती थीं, आज उसके लिए लोगों को सैकड़ों रूपये चुकाने पड़ रहे हैं।
 वेतनभोगियों के लिए तो यह अभिषाप की तरह है। महंगार्इ की तुलना में वेतन नहीं बढ़ने से वेतन और खर्च में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पा रहा है। ऐसे में सरकार को हस्तक्षेप करके कीमतों पर नियंत्रण रखने के दूरगामी उपाय करना चाहिए। सरकार को महंगार्इ के उन्मूलन हेतू गहन अध्ययन करना चाहिए और ऐसे उपाय करना चाहिए ताकि महंगार्इ डायन किसी को न सताए।
महंगाई  के लिए तेजी से बढ़ती जनसंख्या, सरकार द्वारा लगाए जाने वाले अनावष्यक कर तथा मांग की तुलना में आपूर्ति की कमी है। बेहतर बाजार व्यवस्था से कुछ हद तक मुकित मिलेगी। पेटोलियम उत्पाद, माल भाड़ा, बिजली आदि जैसीे मूलभूत विषयों पर जब-तब बढ़ोतरी नहीं करना चाहिए। इन में वृद्धि का विपरित प्रभाव हर वस्तु के मूल्य पर पड़ता है। सरकार की चपलता ही महंगार्इ को नियंत्रित कर सकती है।

बाल विवाह एक अभिशाप

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बचपन जो एक गीली मिट्टी के घडे के समान होता है इसे जिस रूप में ढाला जाए वो उस रूप में ढल जाता है । जिस उम्र में बच्चे खेलने – कूदते है अगर उस उमर में उनका विवाह करा दिया जाये तो उनका जीवन खराब हो जाता है ! तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है । बालविवाह एक अपराध है, इसकी रोकथाम के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को आगे आना चाहिए । लोगों को जागरूक होकर इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए । बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण लिंगभेद और अशिक्षा है साथ ही लड़कियों को कम रुतबा दिया जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना । क्या इसके पीछे आज भी अज्ञानता ही जिमेदार है या फिर धार्मिक, सामाजिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज ही इसका मुख्‍य कारण है, कारण चाहे कोई भी हो इसका खामियाजा तो बच्चों को ही भुगतना पड़ता है ! राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और प. बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है । अभी हाल ही में आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है । रिपोर्ट के अनुसार देश में 47 फीसदी बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है । रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 22 फीसदी बालिकाएं 18 वर्ष से पहले ही माँ बन जाती हैं । यह रिपोर्ट हमारे सामाजिक जीवन के उस स्याह पहलू कि ओर इशारा करती है, जिसे अक्सर हम रीति-रिवाज़ व परम्परा के नाम पर अनदेखा करते हैं ।
बाल विवाह सामाजिक कुरीति है। इसको रोकने के लिए सभी को सम्मलित प्रयास करते हुए जन जागरूकता संबंधी कार्यक्रम चलाने होंगे और दोषियों पर कार्रवाई कर बाल विवाह पर अंकुश लागाया जा सकता है। यह विचार व्यक्त करते हुए जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम यादव ने कहा कि सभी संबंधित अधिकारी इस संबंध में अपनी अपनी जिम्मेदारी का भलीभांति निर्वहन करें।
बाल विवाह रोकने को राज्य स्तरीय कार्य योजना तैयार करने के लिए सोमवार को विकास भवन स्थित सभाकक्ष में यूनीसेफ  द्वारा एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी में जिला पंचायत अध्यक्ष ने कहा कि अशिक्षा, जागरूकता की कमी सहित अन्य तमाम कारण हैं, जिससे बाल विवाह पर पूर्ण नियंत्रण नहीं लग पा रहा है।
यदि कोई व्यक्ति/समूह बाल विवाह को प्रोत्साहन देता है अथवा बाल विवाह करवाता है, तो उसे भी सजा दिए जाने के लिए कानून बनाया गया है। सीडीओ देवेंद्र सिंह कुशवाहा ने कहा कि बाल विवाह को रोकने के लिए शिक्षा और जागरूकता जरूरी है। बाल विवाह की रोकथाम के लिए जिला, ब्लाक एवं ग्राम पंचायत स्तर पर समितियों का गठन भी किया जा चुका है।
उन्होंने कहा कि बाल विवाह के संबंध में ग्राम प्रधान, शिक्षक, एएनएम, आंगनबाड़ी कार्यकत्री एवं पड़ोसी आदि कोई भी शिकायत कर सकता है। गोष्ठी में उपस्थित विभिन्न विभागों के अधिकारियों एवं समाजसेवी संगठनों के पदाधिकारियों के सुझावों को भी सुना गया।
बाल विवाह को रोकने के लिए सर्वप्रथम 1928 में शारदा एक्‍ट बनाया गया व इसे 1929 में पारित किया गया । अंग्रेजों के समय बने शारदा एक्‍ट के मुताबिक नाबालिग लड़के और लड़कियों का विवाह करने पर जुर्माना और कैद हो सकती है । इस एक्‍ट में आज तक तीन संशोधन किए गए है । शारदा एक्‍ट महाराष्‍ट्र के एक प्रसिद्ध नाटक ‘शारदा विवाह’ से प्रेरित होकर बनाया गया । राजस्‍थान में बीकानेर रियासत के तत्‍का‍लीन महाराजा गंगासिंह ने इसे लागु करने के लिए सर्वप्रथम प्रयास किए थे । इसके पश्‍चात सन् 1978 में संसद द्वारा बाल विवाह निवारण कानून में संशोधन कर इसे पारित किया गया । जिसमे विवाह की आयु लड़कियों के लिए कम से कम 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल निर्धारित किया गया । बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 9 एवं 10 के तहत् बाल विवाह के आयोजन पर दो वर्ष तक का कठोर कारावास एवं एक लाख रूपए जुर्माना या दोनों से दंडित करने का प्रावधान है । तीव्र आर्थिक विकास, बढती जागरूकता और शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद भी अगर यह हाल है, तो जाहिर है कि बालिकाओं के अधिकारों और कल्याण की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है । क्या बिडम्बना है कि जिस देश में महिलाएं राष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन हों, वहाँ बाल विवाह जैसी कुप्रथा के चलते बालिकाएं अपने अधिकारों से वंचित कर दी जाती हैं । बाल विवाह न केवल बालिकाओं की सेहत के लिहाज़ से, बल्कि उनके व्यक्तिगत विकास के लिहाज़ से भी खतरनाक है । शिक्षा जो कि उनके भविष्य का उज्ज्वल द्वार माना जाता है, हमेशा के लिए बंद भी हो जाता है । शिक्षा से वंचित रहने के कारण वह अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पातीं ।
बालविवाह एक सामाजिक समस्या है । अत:इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव है । सो समाज को आगे आना होगा तथा बालिका शिक्षा को और बढ़ावा देना होगा । आज युवा वर्ग को आगे आकर इसके विरूद्ध आवाज उठानी होगी और अपने परिवार व समाज के लोगों को इस कुप्रथा को खत्‍म करने के लिए जागरूक करना होगा ।

Saturday 10 September 2016

रिश्तों की वो गरमाहट चली गई...

जिंदगी की जद्दोजहद ने इंसान को जितना मसरूफ बना दिया है, उतना ही उसे अकेला भी कर दिया है। हालांकि आधुनिक संचार के साधनों ने दुनिया को एक दायरे में समेट दिया है।
rishtey
मोबाइल, इंटरनेट के जरिए सात समंदर पार किसी भी पल किसी से भी बात की जा सकती है। इसके बावजूद इंसान बहुत अकेला दिखाई देता है। बहुत ही अकेला, क्योंकि आज के दौर में 'अपनापन' जैसे जज्बे कहीं पीछे छूट गए हैं। अब रिश्तों में वह गरमाहट नहीं रही, जो पहले कभी हुआ करती थी।
पहले लोग संयुक्त परिवार में रहा करते थे। पुरुष बाहर कमाने जाया करते थे और महिलाएं मिल-जुलकर घर-परिवार का कामकाज किया करती थीं। परिवार के सदस्यों में एक-दूसरे के लिए आदर-सम्मान और अपनापन हुआ करता था, लेकिन अब संयुक्त परिवार टूटकर एकल हो रहे हैं। महिलाएं भी कमाने के लिए घर से बाहर जा रही हैं। उनके पास बच्चों के लिए ज्यादा वक्त नहीं है। 
बच्चों का भी ज्यादा वक्त घर से बाहर ही बीतता है। सुबह स्कूल जाना, होम वर्क करना, फिर ट्यूशन के लिए जाना और उसके बाद खेलने जाना। जो वक्त मिलता है, उसमें भी बच्चे मोबाइल या फिर कम्प्यूटर पर गेम खेलते हैं। ऐसे में न माता-पिता के पास बच्चों के लिए वक्त है और न ही बच्चों के पास अपने बड़ों के लिए है। 
जिंदगी की आपाधापी में रिश्ते कहीं खो गए हैं शायद इसीलिए अब लोग परछाइयों यानी वर्चुअल दुनिया में रिश्ते तलाशने लगे हैं। लेकिन अफसोस! यहां भी वे रिश्तों के नाम पर ठगे जा रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट पर ज्यादातर प्रोफाइल फेक होते हैं या फिर उनमें गलत जानकारी दी गई होती है। झूठ की बुनियाद पर बनाए गए रिश्तों की उम्र बस उस वक्त तक ही होती है, जब तक कि झूठ पर पर्दा पड़ा रहता है। लेकिन जैसे ही सच सामने आता है, वह रिश्ता भी दम तोड़ देता है। 
अगर किसी इंसान को कोई अच्छा लगता है और वह उससे उम्रभर का रिश्ता रखना चाहता है तो उसे सामने वाले व्यक्ति से झूठ नहीं बोलना चाहिए। जिस दिन उसका झूठ सामने आ जाएगा उस वक्त उसका रिश्ता तो टूट ही जाएगा, साथ ही वह हमेशा के लिए नजरों से भी गिर जाएगा। कहते हैं-
'इंसान पहाड़ से गिरकर तो उठ सकता है, लेकिन नजरों से गिरकर कभी नहीं उठ सकता।'
ऐसा भी देखने में आया है कि कुछ अपराधी प्रवृत्ति के लोग खुद को अति सभ्य व्यक्ति बताते हुए महिलाओं से दोस्ती गांठते हैं, फिर प्यार के दावे करते हैं। बाद में पता चलता है कि वे शादीशुदा हैं और कई बच्चों के बाप हैं। दरअसल, ऐसे बाप टाइप लोग हीनभावना के शिकार होते हैं। अपराधी प्रवृत्ति के कारण उनकी न घर में इज्जत होती है और न ही बाहर। उनकी हालत धोबी के कुत्ते जैसी होकर रह जाती है यानी -
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का। 
ऐसे में वे सोशल नेटवर्किंग साइट पर अपना अच्छा-सा प्रोफाइल बनाकर खुद को महान साबित करने की कोशिश करते हैं। वे खुद को अति बुद्धिमान, अमीर और न जाने क्या-क्या बताते हैं, जबकि हकीकत में उनकी कोई औकात नहीं होती। ऐसे लोगों की सबसे बड़ी 'उपलब्धि' यही होती है कि ये अपने मित्रों की सूची में ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को शामिल करते हैं। 
यदि कोई महिला अपने स्टेटस में कुछ भी लिख दे तो फौरन उसे 'लाइक' करेंगे, कमेंट्स करेंगे और उसे चने के झाड़ पर चढ़ा देंगे। ऐसे लोग समय-समय पर महिलाएं बदलते रहते हैं यानी आज इसकी प्रशंसा की जा रही है तो कल किसी और की। लेकिन कहते हैं न कि 'काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।' वक्त-दर-वक्त ऐसे मामले सामने आते रहते हैं।

ब्रिटेन में हुए एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि ऑनलाइन रोमांस के चक्कर में तकरीबन 2 लाख लोग धोखा खा चुके हैं। धोखा देने वाले लोग अपनी असली पहचान छुपाकर रखते थे और आकर्षक मॉडल की तस्वीर अपनी प्रोफाइल पर लगाकर लोगों को आकर्षित किया करते थे।

ऐसे में सोशल नेटवर्किंग साइटों का इस्तेमाल करने वाले लोगों का उनके प्रति जुड़ाव रखना स्वाभाविक ही था, लेकिन जब उन्होंने झूठे प्रोफाइल वाले लोगों से मिलने की कोशिश की तो उन्हें सारी असलियत पता चल गई। कई लोग अपनी तस्वीर तो असली लगाते हैं, लेकिन बाकी जानकारी झूठी देते हैं। 
झूठी प्रोफाइल बनाने वाले या अपनी प्रोफाइल में झूठी जानकारी देने वाले लोग महिलाओं को फांसकर उनसे विवाह तक कर लेते हैं। सच सामने आने पर उससे जुड़ीं महिलाओं की जिंदगी बर्बाद होती है। एक तरफ तो उसकी अपनी पत्नी की और दूसरी उस महिला की जिससे उसने दूसरी शादी की है।

एक खबर के मुताब‍िक अमेरिका में एक महिला ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर अपने पति की दूसरी पत्नी को खोज निकाला। फेसबुक पर बैठी इस महिला ने साइड में आने वाले पॉपअप ‘पीपुल यू मे नो’ में एक महिला को दोस्त बनाया। उसकी फेसबुक पर गई तो देखा कि उसके पति की वेडिंग केक काटते हुए फोटो थी। 
समझ में नहीं आया कि उसका पति किसी और के घर में वेडिंग केक क्यों काट रहा है? उसने अपने पति की मां को बुलाया, पति को बुलाया। दोनों से पूछा, माजरा क्या है? पति ने पहली पत्नी को समझाया कि ज्यादा शोर न मचाए, हम इस मामले को सुलझा लेंगे। मगर इतने बड़े धोखे से आहत महिला ने घर वालों को इसकी जानकारी दी। उसने अधिकारियों से इस मामले की शिकायत की। 

अदालत में पेश दस्तावेज के मुताबिक दोनों अभी भी पति-पत्नी हैं। उन्होंने तलाक के लिए भी आवेदन नहीं किया। पियर्स काउंटी के एक अधिकारी के मुताबिक, एलन ओनील नाम के इस व्यक्ति ने 2001 में एलन फल्क के अपने पुराने नाम से शादी की। फिर 2009 में पति ओनील ने नाम बदलकर एलन करवा लिया था और किसी दूसरी महिला से शादी कर ली थी। उसने पहली पत्नी को तलाक नहीं दिया था। 

दरअसल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स की वजह से रिश्ते तेजी से टूट रहे हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ मैट्रीमोनियल लॉयर्स के एक सर्वे में यह बात सामने आई है। सर्वे के मुताबिक तलाक दिलाने वाले करीब 80 फीसदी वकीलों ने माना कि उन्होंने तलाक के लिए सोशल नेटवर्किंग पर की गई बेवफाई वाली टिप्पणियों को अदालत में बतौर सबूत पेश किया है। 

तलाक के सबसे ज्यादा मामले फेसबुक से जुड़े हैं। 66 फीसदी मामले फेसबुक से, 15 फीसदी माईस्पेस से, 5 फीसदी ट्विटर और 14 फीसदी मामले बाकी दूसरी सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुड़े हैं। इन डिजिटल फुटप्रिंट्स को अदालत में तलाक के एविडेंस के रूप में पेश किया गया।

ब्रिटिश न्यूज पेपर 'द सन' के मुताबिक पिछले एक साल में फेसबुक पर की गईं आपत्तिजनक टिप्पणियां तलाक की सबसे बड़ी वजह बनीं। रिश्ते खराब होने और टूटने के बाद लोग अपने साथी के संदेश और तस्वीरों को तलाक की सुनवाई के दौरान इस्तेमाल कर रहे हैं।

माना जिन्दगी में प्रेम की भी अपनी अहमियत है। मगर प्रेम ही ही तो सबकुछ नहीं है। जिन्दगी बहुत खूबसूरत है... और उससे भी खूबसूरत होते हैं हमारे इन्द्रधनुषी सपने। हमें अपनी भावनाएं ऐसे व्यक्ति से नहीं जोड़नी चाहिए, जो इस काबिल ही न हो। जिस तरह पूजा के फूलों को कूड़ेदान में नहीं फेंका जा सकता, उसी तरह अपने प्रेम और इससे जुडी कोमल भावनाओं को किसी दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति पर न्योछावर नहीं किया जा सकता।
दरअसल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जहां कुछ फायदे हैं, वहीं नुकसान भी हैं इसलिए सोच-समझकर ही इनका इस्तेमाल करें। अपने आसपास के लोगों को वक्त दें, उनके साथ रिश्ते निभाएं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के आभासी मित्रों से परस्पर दूरी बनाकर रखें। कहीं ऐसा न हो कि आभासी फर्जी दोस्तों के चक्कर में आप अपने उन दोस्तों को खो बैठें, जो आपके सच्चे हितैषी हैं। 
 वाल्ट व्हिटमैन के शब्दों में-
'ओ राही! अगर तुझे मुझसे बात करने की इच्छा हुई, तो मैं भी तुझसे क्यों न बात करूं...।'

मजदूरी के दलदल में फंसा बचपन

बचपन, इंसान की जिंदगी का सबसे हसीन पल, न किसी बात की चिंता और न ही कोई जिम्मेदारी। बस हर समय अपनी मस्तियों में खोए रहना, खेलना-कूदना और पढ़ना। लेकिन सभी का बचपन ऐसा हो यह जरूरी नहीं।
बाल मजदूरी की समस्या से आप अच्छी तरह वाकिफ होंगे। कोई भी ऐसा बच्चा जिसकी उम्र 14 वर्ष से कम हो और वह जीविका के लिए काम करे बाल मजदूर कहलाता है। गरीबी, लाचारी और माता-पिता की प्रताड़ना के चलते ये बच्चे बाल मजदूरी के इस दलदल में धंसते चले जाते हैं।
आज दुनिया भर में 215 मिलियन ऐसे बच्चे हैं जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है। और इन बच्चों का समय स्कूल में कॉपी-किताबों और दोस्तों के बीच नहीं बल्कि होटलों, घरों, उद्योगों में बर्तनों, झाड़ू-पोंछे और औजारों के बीच बीतता है।
भारत में यह स्थिति बहुत ही भयावह हो चली है। दुनिया में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में ही हैं। 1991 की जनगणना के हिसाब से बाल मजदूरों का आंकड़ा 11.3 मिलियन था। 2001 में यह आंकड़ा बढ़कर 12.7 मिलियन पहुंच गया।
बड़े शहरों के साथ-साथ आपको छोटे शहरों में भी हर गली नुक्कड़ पर कई राजू-मुन्नी-छोटू-चवन्नी मिल जाएंगे जो हालातों के चलते बाल मजदूरी की गिरफ्त में आ चुके हैं। और यह बात सिर्फ बाल मजदूरी तक ही सीमि‍त नहीं है इसके साथ ही बच्चों को कई घिनौने कुकृत्यों का भी सामना करना पड़ता है। जिनका बच्चों के मासूम मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है।
कई एनजीओ समाज में फैली इस कुरीति को पूरी तरह नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। इन एनजीओ के अनुसार 50.2 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं जो सप्ताह के सातों दिन काम करते हैं। 53.22 प्रतिशत यौन प्रताड़ना के शिकार हो रहे हैं। इनमें से हर दूसरे बच्चे को किसी न किसी तरह भावनात्मक रूप से प्रताड़‍ित ‍किया जा रहा है। 50 प्रतिशत बच्चे शारीरिक प्रताड़ना के शिकार हो रहे हैं।
बाल मजदूर की इस स्थिति में सुधार के लिए सरकार ने 1986 में चाइल्ड लेबर एक्ट बनाया जिसके तहत बाल मजदूरी को एक अपराध माना गया तथा रोजगार पाने की न्यूनतम आयु 14 वर्ष कर दी। इसी के साथ सरकार नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोजेक्ट के रूप में बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिए कदम बढ़ा चुकी है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य बच्चों को इस संकट से बचाना है। जनवरी 2005 में नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोजेक्ट स्कीम को 21 विभिन्न भारतीय प्रदेशों के 250 जिलों तक बढ़ाया गया।
आज सरकार ने आठवीं तक की शिक्षा को अनिवार्य और निशुल्क कर दिया है, लेकिन लोगों की गरीबी और बेबसी के आगे यह योजना भी निष्फल साबित होती दिखाई दे रही है। बच्चों के माता-पिता सिर्फ इस वजह से उन्हें स्कूल नहीं भेजते क्योंकि उनके स्कूल जाने से परिवार की आमदनी कम हो जाएगी।
माना जा रहा है कि आज 60 मिलियन बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं, अगर ये आंकड़े सच हैं तब सरकार को अपनी आंखें खोलनी होगी। आंकड़ों की यह भयावहता हमारे भविष्य का कलंक बन सकती है।
भारत में बाल मजदूरों की इतनी अधिक संख्या होने का मुख्य कारण सिर्फ और सिर्फ गरीबी है। यहां एक तरफ तो ऐसे बच्चों का समूह है बड़े-बड़े मंहगे होटलों में 56 भोग का आनंद उठाता है और दूसरी तरफ ऐसे बच्चों का समूह है जो गरीब हैं, अनाथ हैं, जिन्हें पेटभर खाना भी नसीब नहीं होता। दूसरों की जूठनों के सहारे वे अपना जीवनयापन करते हैं।
जब यही बच्चे दो वक्त की रोटी कमाना चाहते हैं तब इन्हें बाल मजदूर का हवाला देकर कई जगह काम ही नहीं दिया जाता। आखिर ये बच्चे क्या करें, कहां जाएं ताकि इनकी समस्या का समाधान हो सके। सरकार ने बाल मजदूरी के खिलाफ कानून तो बना दिए। इसे एक अपराध भी घोषि‍त कर दिया लेकिन क्या इन बच्चों की कभी गंभीरता से सुध ली?
बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिए जरूरी है गरीबी को खत्म करना। इन बच्चों के लिए दो वक्त का खाना मुहैया कराना। इसके लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। सिर्फ सरकार ही नहीं आम जनता की भी इसमें सहभागिता जरूरी है। हर एक व्यक्ति जो आर्थिक रूप से सक्षम हो अगर ऐसे एक बच्चे की भी जिम्मेदारी लेने लगे तो सारा परिदृश्य ही बदल जाएगा।
क्या आपको नहीं लगता कि कोमल बचपन को इस तरह गर्त में जाने से आप रोक सकते हैं? देश के सुरक्षित भविष्य के लिए वक्त आ गया है कि आपको यह जिम्मेदारी अब लेनी ही होगी।
क्या आप लेंगे ऐसे किसी एक मासूम की जिम्मेदारी ?

दहेज प्रथा

दहेज क्या है?
विवाह के समय माता पिता द्वारा अपनी संपत्ति में से कन्या को कुछ धन, वस्त्र, आभूषण आदि के रूप में देना ही दहेज है। प्राचीन समय में ये प्रथा एक वरदान थी. इससे नये दंपत्ति को नया घर बसाने में हर प्रकार का सामान पहले ही दहेज के रूप में मिल जाता था. माता पिता भी इसे देने में प्रसन्नता का अनुभव करते थे।
dahejपरंतु समय के साथ साथ यह स्थिति उलट गयी. वही दहेज जो पहले वरदान था अभिशाप बन गया है. आज चाहे दहेज माता पिता के सामर्थ्य में हो ना हो, जुटाना ही पड़ता है। कई बार तो विवाह के लिए लिया गया क़र्ज़ सारी उमर नहीं चुकता तथा वर पक्ष भी उस धन का प्रयोग व्यर्थ के दिखावे में खर्च कर उसका नाश कर देता है। इसका परिणाम यह निकला कि विवाह जैसा पवित्र संस्कार कलुषित बन गया, कन्यायें माता पिता पर बोझ बन गयीं और उनका जन्म दुर्भाग्यशाली हो गया, पिता की असमर्थता पर कन्यायें आत्महत्या तक पर उतारू हो गयीं।
यदि हम आज ठंडे मन से इस समस्या पर विचार करें तो आज दहेज की कोई आवयशकता नहीं है। आज क़ानून द्वारा पुत्री को पिता की संपत्ति का अधिकार मिल सकता है। आज लड़कियाँ लड़कों से अधिक पढ़ लिख रही है, और उनसे बड़ी पद्वियाँ प्राप्त कर रही हैं। अत: उनका जीवन भी किसी प्रकार का भार नहीं है।
इस प्रथा का भयाव्ह पक्ष तो वह है जब वार पक्ष विवाह से पहले हि एक बड़ी राशि कि माँग करता है, वह कार या स्कूटर कि माँग करता है जो पूरी ना होने पर वह विवाह से इनकार कर देता है, कई अवस्थाओं में तो दरवाजे पर आई बारात दहेज पूरा ना मिलने पर वापिस चली जाती है, या विवाह के पश्चात कन्या को कम दहेज लाने के कारण सताया जाता है।
ऐसी भयाव्ह स्थिति कई दिनों तक नहीं चल सकती थी। अत: सरकार को इसके विरुध कदम उठाने पड़े, आज समाज में जागृति आ रही है और कोई भी समझदार व्यक्ति ऐसी स्थिति में मूक दर्शक नहीं रह सकता, सरकार ने क़ानूनी रूप से दहेज लेने-देने पर प्रतिबंध लगा दिया है, अधिक संख्या में बारात लाना भी अपराध है, दहेज के लिए कन्या को सताना भी अपराध है।
परंतु इतना होने पर भी पर्दे के पीछे दहेज चल ही रहा है। उसमे कोई कमी नहीं हुई है, इसके लिया नवयुवकों को स्वयं आगे आकर इस लानत से छुटकारा पाना होगा, साथ ही समाज को भी प्रचार द्वारा अपनी मान्यताए बदलकर दहेज के लोभियों को कुदृष्टि से देखकर अपमानित करना चाहिए, अभी तक इस विशय में बहुत कुछ करना अभी शेष है, इसका अंत तो युध स्तर पर कार्य करके ही किया जा सकता है।

बेरोजगारी की समस्या

unemploymentवास्तव में बेरोजगारी कि समस्या एक दानव की तरह हमारे देश के नवयुवकों को खा रही हैI
एक नौजवान जब पढ़ाई करता है, अपने क्षेत्र में विशेष ज्ञान प्राप्त करता है फिर नौकरी के लिए भटकता फिरता है और जब उसके हाथ केवल निराशा ही लगती है तब उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगता हैI ऐसे ही कई बेरोजगार नवयुवक गलत रास्ते अपनाने लगते हैं, बुरी आदतों का शिकार बनते हैं और समाज के लिए समस्याएँ उत्पन्न करते हैंI विचार किया जाये तो मुख्य रूप से गाँवों से लोग बड़ी संख्या में शहरों में आना, दूषित शिक्षा प्रणाली, बढ़ती जनसंख्या जैसे कारण इस समस्या के मूल में दिखाई देते हैंI अतः बेरोजगारी कि समस्या को दूर करने के लिए हमें इन कारणों से निपटना होगाI
कृषि का समुचित विकास आवश्यक हैI शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन करके उसे व्य्वसाय से जोड़ा जाये, जनसंख्या नियंत्रण के और सजग प्रयास हों, साथ ही यह भी आवश्यक है कि संपूर्ण राष्ट्र के लिए एक व्यापक रोजगार के नये अवसर उपलब्ध करवाए जाएँI सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में अनेक उपाय किये जा रहे हैं किंतु और अधिक सजग प्रयासों कि आवश्यकता हैI

प्रदुषण – समस्या और समाधान

मनुष्य के उत्तम स्वास्थ्य के लिए वातावरण का शुद्ध होना परम आवश्यक होता है। जब से व्यक्ति ने प्रकृति पर विजय पाने का अभियान शुरु किया है, तभी से मानव प्रकृति के प्राकृतिक सुखों से हाथ धो रहा है। मानव ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है, जिससे अस्वास्थ्यकारी परिस्थितियाँ जन्म ले रही हैं। पर्यावरण में निहित एक या अधिक तत्वों की मात्रा अपने निश्चित अनुपात से बढ़ने लगती हैं, तो परिवर्तन होना आरंभ हो जाता है। पर्यावरण में होने वाले इस घातक परिवर्तन को ही प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है।
Pradushan
प्रदूषण के विभिन्न रुप हो सकते हैं, इनमें वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण मुख्य हैं। (Pradushan ke Karan, Pradushan ke Prabhav, Pradushan ke Samadhan)
‘वायु प्रदूषण’ (Vayu Pradushan) का सबसे बड़ा कारण वाहनों की बढ़ती हुई संख्या है। वाहनों से उत्सर्जित हानिकारक गैसें वायु में कार्बन मोनोऑक्साइड , कार्बन डाईऑक्साइड , नाइट्रोजन डाईऑक्साइड और मीथेन आदि की मात्रा बड़  रही हैं। लकड़ी, कोयला, खनिज तेल, कार्बनिक पदार्थों के ज्वलन के कारण भी वायुमंडल दूषित होता है। औद्योगिक संस्थानों से उत्सर्जित सल्फर डाई – ऑक्साइड और हाईड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसें प्राणियों तथा अन्य पदार्थों को काफी हानि पहुँचाती हैं। इन गैसों से प्रदूषित वायु में साँस लेने से व्यक्ति का स्वास्थ्य खराब होता ही है, साथ ही लोगों का जीवन – स्तर भी प्रभावित होता है।
‘जल प्रदूषण’ (Jal pradushan) का सबसे बड़ा कारण साफ जल में कारखानों तथा अन्य तरीकों से अपशिष्ट पदार्थों को मिलाने से होता है। जब औद्योगिक अनुपयोगी वस्तुएँ जल में मिला दी जाती हैं, तो वह जल पीने योग्य नहीं रहता है। मानव द्वारा उपयोग में लाया गया जल अपशिष्ट पदार्थों ; जैसे – मल – मूत्र , साबुन आदि गंदगी से युक्त होता है। इस दूषित जल को नालों के द्वारा नदियों में बहा दिया जाता है। ऐसे अनेकों नाले नदियों में भारी मात्रा में प्रदूषण का स्तर बढ़ा रहे हैं। ऐसा जल पीने योग्य नहीं रहता और इसे यदि पी लिया जाए, तो स्वास्थ्य में विपरीत असर पड़ता है।
भूमि प्रदूषण’ (Bhumi Pradushan) मनुष्य के विकास के साथ ही उसकी आबादी भी निरंतर बढ़ती जा रही है। बढ़ती आबादी की खाद्य संबंधी आपूर्ति के लिए फसल की पैदावार बढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है। उसके लिए मिट्टी की उर्वकता शक्ति बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। परिणामस्वरूप मिट्टी में रासायनिक खाद डाली जाती है, इस खाद ने भूमि की उर्वरकता को तो बढ़ाया परन्तु इससे भूमि में विषैले पदार्थों का समावेश होने लगा है। ये विषैले पदार्थ फल और सब्जियों के माध्यम से मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसके स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल रहे हैं। मनुष्य ने जबसे वनों को काटना प्रारंभ किया है, तब से मृदा का कटाव भी हो रहा है।
‘ध्वनि प्रदूषण’ (Dhwani Pradushan) बड़े – बड़े नगरों में गंभीर समस्या बनकर सामने आ रहा है। अनेक प्रकार के वाहन , लाउडस्पीकर और औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के शोर ने ध्वनि प्रदूषण को जन्म दिया है। इससे लोगों में बधिरता, सरदर्द आदि बीमारियाँ पाई जाती हैं।
प्रदूषण के समाधान : प्रदूषण को रोकने के लिए वायुमंडल को साफ – सुथरा रखना परमावश्यक है। इस ओर जनता को जागरुक किया जाना चाहिए। बस्ती व नगर के समस्त वर्जित पदार्थों के निष्कासन के लिए सुदूर स्थान पर समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। जो औद्योगिक प्रतिष्ठान शहरों तथा घनी आबादी के बीच में हैं, उन्हें नगरों से दूर स्थानांतरित करने का पूरा प्रबन्ध करना चाहिए। घरों से निकलने वाले दूषित जल को साफ करने के लिए बड़े – बड़े प्लाट लगाने चाहिए। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिए। वन संरक्षण तथा वृक्षारोपण को सर्वाधिक प्राथमिकता देना चाहिए। इस प्रकार प्रदूषण युक्त वातावरण का निर्माण किया जा सकेगा।

लड़का लड़की एक सामान

Girl and Boy is Sameबेटा – बेटी एक समान
पढ़ी लिखी लड़की रोशनी घर की
पढ़ा लिखा लड़का दीपक घर का
आज के समय में लड़का लड़की एक सामान है। आज अगर कोई ये मानता है की लड़की कुछ नही कर सकती और लड़का सब कुछ कर सकता है तो वो इंसान बिलकुल गलत है।
आज का समय पहले की तरह नही जहाँ लड़कियों को सिर्फ घर का काम और बच्चो को संभालने की जिमेदारी दी जाती थी और ये माना जाता था की इसके इलावा लड़कियां और कुछ नही कर सकती। अब वो युग है जहाँ लड़कियां लड़को के कंधे से कन्धा मिला के काम करती है।
अब सरकार और समाज ने दोनों को बराबरी का दर्जा दिया है। सभी क्षैत्रों में लड़का-लड़की दोनों सामान तरक्क़ी कर रहे है। कल्पना चावला, इंदिरा गांधी जैसी कई औरतों ने साबित किया है की दोनों में कोई भेदभाव नहीं है। इंजीनियरिंग , डॉक्टर, वकील ,चार्टर्ड अकाउंटेंट आदि सभी महत्पूर्ण पेशो में लड़कियां बराबरी से अपना नाम रोशन कर रही हैं। आगे भविष्य में भी लड़का और लड़की दोनों समानता से विश्व में मानव जाति के विकास में योगदान देंगे।
लेकिन अभी भी कई इलाके ऐसे है जहाँ लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है और उन्हें जनम से पहले ही मार दिया जाता है। हमे ऐसे लोगो को जागरूक करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि वो इस बात को समझ सके की लड़का लड़की दोनों एक सामान है।

समाज – सेवा

ऐसी मान्यता है कि मनुष्य योनि अनेक जन्मों के उपरान्त कठिनाई से प्राप्त होती है । मान्यता चाहे जो भी हो, परन्तु यह सत्य है कि समस्त प्राणियों में मनुष्य ही श्रेष्ठ है । इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले समस्त प्राणियों की तुलना में मनुष्य को अधिक विकसित मस्तिष्क प्राप्त है जिससे वह उचित-अनुचित का विचार करने में सक्षम होता है ।
Social Helpपृथ्वी पर अन्य प्राणी पेट की भूख शान्त करने के लिए परस्पर युद्ध करते रहते हैं और उन्हें एक-दूसरे के दुःखों की कतई चिन्ता नहीं होती । परन्तु मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । मनुष्य समूह में परस्पर मिल-जुलकर रहता है और समाज का अस्तित्व बनाए रखने के लिए मनुष्य को एक-दूसरे के सुख-दुःख में भागीदार बनना पड़ता है ।
अपने परिवार का भरण-पोषण, उसकी सहायता तो जीव-जन्तु, पशु-पक्षी भी करते हैं परन्तु मनुष्य ऐसा प्राणी है, जो सपूर्ण समाज के उत्थान के लिए प्रत्येक पीडित व्यक्ति की सहायता का प्रयत्न करता है । किसी भी पीड़ित व्यक्ति की निःस्वार्थ भावना से सहायता करना ही समाज-सेवा है ।
वस्तुत: कोई भी समाज तभी खुशहाल रह सकता है जब उसका प्रत्येक व्यक्ति दुःखों से बचा रहे । किसी भी समाज में यदि चंद लोग सुविधा-सम्पन्न हों और शेष कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहे हों, तो ऐसा समाज उन्नति नहीं कर सकता ।
पीड़ित लोगों के कष्टों का दुष्प्रभाव स्पष्टत: सपूर्ण समाज पर पड़ता है । समाज के चार सम्पन्न लोगों को पास-पड़ोस में यदि कष्टों से रोते-बिलखते लोग दिखाई देंगे, तो उनके मन-मस्तिष्क पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा । चाहे उनके मन में पीड़ित लोगों की सहायता करने की भावना उत्पन्न न हो, परन्तु पीड़ित लोगों के दुःखों से उनका मन अशान्त अवश्य होगा ।
किसी भी समाज में व्याप्त रोग अथवा कष्ट का दुअभाव समाज के सम्पूर्ण वातावरण को दूषित करता है और समाज की खुशहाली में अवरोध उत्पन्न करता है । समाज के जागरूक व्यक्तियों को सपूर्ण समाज के हित में ही अपना हित दृष्टिगोचर होता है । मनुष्य की विवशता है कि वह अकेला जीवन व्यतीत नहीं कर सकता ।
जीवन-पथ पर प्रत्येक व्यक्ति को लोगों के सहयोग की आवश्यकता पड़ती है । एक-दूसरे के सहयोग से ही मनुष्य उन्नति करता है । परन्तु स्वार्थि प्रवृति के लोग केवल अपने हित की चिन्ता करते हैं । उनके हृदय में सम्पूर्ण समाज के उत्थान की भावना उत्पन्न नहीं होती । ऐसे व्यक्ति समाज की सेवा के अयोग्य होते हैं ।
समाज में उनका कोई योगदान नहीं होता । समाज सेवा के लिए त्याग एवं परोपकार की भावना का होना आवश्यक है । ऋषि-मुनियों के हमारे देश में मानव-समाज को आरम्भ से ही परोपकार का संदेश दिया जाता रहा है । वास्तव में परोपकार ही समाज-सेवा है ।
किसी भी पीड़ित व्यक्ति की सहायता करने से वह सक्षम बनता है और उसमें समाज के उत्थान में अपना योगदान देने की योग्यता उत्पन्न इस प्रकार समाज शीघ्र उन्नति करता है । वास्तव में रोगग्रस्त, अभावग्रस्त, अशिक्षित लोगों का समूह उन्नति करने के अयोग्य होता है ।
समाज में ऐसे लोग अधिक हों तो समाज लगता है । रोगी का रोग दूर करके, अभावग्रस्त को अभाव से लड़ने के योग्य बनाकर, अशिक्षित को शिक्षित ही उन्हें समाज एवं राष्ट्र का योग्य नागरिक बनाया जा सकता है । निःस्वार्थ भावना से समाज के हित के लिए किए गए । ही समाज की सच्ची सेवा होती है ।
सभ्य, सुशिक्षित, के पथ पर अग्रसर समाज को देखकर ही वास्तव में को सुख-शांति का अनुभव प्राप्त हो सकता है । इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले अन्य जीव-जन्तुओं और मनुष्य में यही अन्तर है । अन्य जीव-जन्तु केवल अपने भरण-पोषण के लिए परिश्रम करते हैं और निश्चित आयु के उपरान्त समाप्त हो जाते हैं ।
अपने समाज के लिए उनका कोई योगदान नहीं होता । परन्तु समाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य समाज के उत्थान के लिए भी कार्य करता है । मनुष्य के सेवा-कार्य उसे युगों तक जीवित बनाए रखते हैं । कोई भी विकसित समाज सदा समाज-सेवकों का ऋणी रहता है ।