नर से भारी नारी, एक नहीं दो-दो मात्राएं । यह कहकर कविवर दिनकर ने नारी के महत्त्व को स्पष्ट किया है । यह सच है कि नारी नर से अधिक महत्वपूर्ण है । हमारी संस्कृति में जो कुछ भी सुंदर है, शुभ है, कल्याणकारी है, मंगलकारी है, उसकी कल्पना नारी रूप में ही की गई है 1 सौंदर्य कामदेव तथा रति के मिलन में ही पूर्णतया प्राप्त करता है । धन- धान्य की देवी भी लक्ष्मी ही है । विद्या एवं कलाओं की देवी वीणावादिनी, हंसवाहिनी सरस्वती जी हैं । भगवान शिव की शक्ति का आधार शक्तिरूपिणी दुर्गा या पार्वती हैं ।
राम से पहले सीता को याद करना तथा कृष्ण से पहले राधा का नाम लिया जाना इस बात का सूचक है कि हमारे यहां नारी के महत्त्व को प्राचीन काल से ही पहचान लिया गया था । भारतीय समाज में नारी सदा से पूज्य नहीं है । कोई भी धार्मिक क्रिया नारी के बिना अधूरी मानी जाती है । भगवान राम को अश्वमेघ यज्ञ करते समय सीता की सोने की मूर्ति साथ रखनी पड़ी थी । नारी के अपमान को इस देश में क्षमा नहीं किया । रावण ने सीता का अपमान किया आज तक उसे उसके दुष्कर्म के लिए जाना जाता है तथा चौराहे पर जलाया जाता है । रावण की शक्तियां तथा उसकी तपस्या भी उसे जन-मानस के क्रोध से नहीं बचा सकी ।
दुर्योधन ने द्रोपदी का अपमान किया था जिसका नतीजा महाभारत का युद्ध था । भारत में अनुसूया और सावित्री जैसी साध्वियां भी हुई । सावित्री तो अपने पति के जीवन को वापिस लाने के लिए यमराज के द्वार तक जा पहुंची । राष्ट्र की जनसंख्या का आधा भाग नारियां हैं । जब तक नारियां उपेक्षित, शोषित एवं पिछड़ी रहेंगी तब तक देश उन्नति नहीं कर सकता । नारी किसी भी समाज को बदलने की क्षमता रखती है । आज भारत की नारी घर की चारदीवारी से निकलकर आजीविका कमाने के लिए कार्यालयों में पहुंच गई है ।
आज नारी पुरुषों पर बोझ नहीं बनती बल्कि पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है । आज भारत कइा? नारी हर व्यवसाय में उच्च पदों पर देखी जा सकती है । शिक्षा का क्षेत्र हो या सैनिक- सेवाओं का, सरकारी उद्योगों में काम करने की बात हो निजी औद्योगिक प्रतिष्ठानों की देखभाल का प्रश्न हो, सभी जगह नारियां कार्यरत दिखाई देती है । परिवार एवं नारी एक दूसरे के पर्यायवाची हैं । नारी के बिना परिवार की कल्पना असंभव है । नारी के बिना पुरुष अधूरा है । नारी के बिना घर सुना है ।
पारिवारिक सुख-समृद्धि में भी नारी की मह्त्वपूर्ण भूमिका है । नारी स्नेहमयी बहन, बेटी, ममतामयी मां तथा पत्नी के रूप में अपने सभी रिश्तों को निभाती है । बेटी के रूप में वह घर के काम- काज मैं हाथ बंटाती है । बहन बनकर वह अपने भाई की दीर्घायु की कामना करती है । बहन अपने भाई के मंगलमय जीवन की कामना करती है । संविधान में बेटी को पिता की संपत्ति में भाईयों के समान बराबर का अधिकारी बना दिया है परन्तु शायद ही कोई बहन है जो अपने अधिकार के लिए लड़ती है ।
मां के रूप में नारी के त्याग और धैर्य की सीमा को देखा जा सकता है । नारी दया, क्षमा, ममता एवं करुणा की मूर्ति है । वह उपांसुओं का समुद्र पी जाती है और उफ तक नहीं करती । पति एवं पत्नी मिलकर पारिवारिक जीवन को स्वर्ग भी बना सकते हैं । नारी घर में रहकर जो कार्य करती है, उसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती ।
नारी नौकरी भी करती है, बच्चे तथा परिवार को संभालती है, घर का काम भी करती है । मध्य युग में भारतीय नारी की प्रतिष्ठा कम हो गई थी परंतु स्वाधीनता संग्राम में नारियों के महत्त्वपूर्ण योगदान के कारण उनकी प्रतिष्ठा पुन : बड़ी । आज भारतीय समाज में नारी को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हैं । जीवय के सभी क्षेत्रों मैं वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है । आज अनेक उच्च पदों पर महिलाएं असिनि हैं ।
दहेज प्र था, बाल-विवाह, सती प्र था तथा विधवाओं के प्रति बुरा व्यवहार आज भी प्रचलित है । नव वधुओं को जलाने की एवं उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर करने की घटनाएं आरज भी पढ़ने एवं सुनने को मिलती हैं । इस सबके बावजूद यदि देखा जाए तो नारी की दशा में बहुत सुधार हुआ है वह अपने पिता या पति पर निर्भर नहीं है । वह पढ़- लिखकर अपने पैरों पर खड़ी है ।
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