Monday 19 September 2016

बाल विवाह एक अभिशाप

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बचपन जो एक गीली मिट्टी के घडे के समान होता है इसे जिस रूप में ढाला जाए वो उस रूप में ढल जाता है । जिस उम्र में बच्चे खेलने – कूदते है अगर उस उमर में उनका विवाह करा दिया जाये तो उनका जीवन खराब हो जाता है ! तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है । बालविवाह एक अपराध है, इसकी रोकथाम के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को आगे आना चाहिए । लोगों को जागरूक होकर इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए । बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण लिंगभेद और अशिक्षा है साथ ही लड़कियों को कम रुतबा दिया जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना । क्या इसके पीछे आज भी अज्ञानता ही जिमेदार है या फिर धार्मिक, सामाजिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज ही इसका मुख्‍य कारण है, कारण चाहे कोई भी हो इसका खामियाजा तो बच्चों को ही भुगतना पड़ता है ! राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और प. बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है । अभी हाल ही में आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है । रिपोर्ट के अनुसार देश में 47 फीसदी बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है । रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 22 फीसदी बालिकाएं 18 वर्ष से पहले ही माँ बन जाती हैं । यह रिपोर्ट हमारे सामाजिक जीवन के उस स्याह पहलू कि ओर इशारा करती है, जिसे अक्सर हम रीति-रिवाज़ व परम्परा के नाम पर अनदेखा करते हैं ।
बाल विवाह सामाजिक कुरीति है। इसको रोकने के लिए सभी को सम्मलित प्रयास करते हुए जन जागरूकता संबंधी कार्यक्रम चलाने होंगे और दोषियों पर कार्रवाई कर बाल विवाह पर अंकुश लागाया जा सकता है। यह विचार व्यक्त करते हुए जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम यादव ने कहा कि सभी संबंधित अधिकारी इस संबंध में अपनी अपनी जिम्मेदारी का भलीभांति निर्वहन करें।
बाल विवाह रोकने को राज्य स्तरीय कार्य योजना तैयार करने के लिए सोमवार को विकास भवन स्थित सभाकक्ष में यूनीसेफ  द्वारा एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी में जिला पंचायत अध्यक्ष ने कहा कि अशिक्षा, जागरूकता की कमी सहित अन्य तमाम कारण हैं, जिससे बाल विवाह पर पूर्ण नियंत्रण नहीं लग पा रहा है।
यदि कोई व्यक्ति/समूह बाल विवाह को प्रोत्साहन देता है अथवा बाल विवाह करवाता है, तो उसे भी सजा दिए जाने के लिए कानून बनाया गया है। सीडीओ देवेंद्र सिंह कुशवाहा ने कहा कि बाल विवाह को रोकने के लिए शिक्षा और जागरूकता जरूरी है। बाल विवाह की रोकथाम के लिए जिला, ब्लाक एवं ग्राम पंचायत स्तर पर समितियों का गठन भी किया जा चुका है।
उन्होंने कहा कि बाल विवाह के संबंध में ग्राम प्रधान, शिक्षक, एएनएम, आंगनबाड़ी कार्यकत्री एवं पड़ोसी आदि कोई भी शिकायत कर सकता है। गोष्ठी में उपस्थित विभिन्न विभागों के अधिकारियों एवं समाजसेवी संगठनों के पदाधिकारियों के सुझावों को भी सुना गया।
बाल विवाह को रोकने के लिए सर्वप्रथम 1928 में शारदा एक्‍ट बनाया गया व इसे 1929 में पारित किया गया । अंग्रेजों के समय बने शारदा एक्‍ट के मुताबिक नाबालिग लड़के और लड़कियों का विवाह करने पर जुर्माना और कैद हो सकती है । इस एक्‍ट में आज तक तीन संशोधन किए गए है । शारदा एक्‍ट महाराष्‍ट्र के एक प्रसिद्ध नाटक ‘शारदा विवाह’ से प्रेरित होकर बनाया गया । राजस्‍थान में बीकानेर रियासत के तत्‍का‍लीन महाराजा गंगासिंह ने इसे लागु करने के लिए सर्वप्रथम प्रयास किए थे । इसके पश्‍चात सन् 1978 में संसद द्वारा बाल विवाह निवारण कानून में संशोधन कर इसे पारित किया गया । जिसमे विवाह की आयु लड़कियों के लिए कम से कम 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल निर्धारित किया गया । बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 9 एवं 10 के तहत् बाल विवाह के आयोजन पर दो वर्ष तक का कठोर कारावास एवं एक लाख रूपए जुर्माना या दोनों से दंडित करने का प्रावधान है । तीव्र आर्थिक विकास, बढती जागरूकता और शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद भी अगर यह हाल है, तो जाहिर है कि बालिकाओं के अधिकारों और कल्याण की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है । क्या बिडम्बना है कि जिस देश में महिलाएं राष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन हों, वहाँ बाल विवाह जैसी कुप्रथा के चलते बालिकाएं अपने अधिकारों से वंचित कर दी जाती हैं । बाल विवाह न केवल बालिकाओं की सेहत के लिहाज़ से, बल्कि उनके व्यक्तिगत विकास के लिहाज़ से भी खतरनाक है । शिक्षा जो कि उनके भविष्य का उज्ज्वल द्वार माना जाता है, हमेशा के लिए बंद भी हो जाता है । शिक्षा से वंचित रहने के कारण वह अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पातीं ।
बालविवाह एक सामाजिक समस्या है । अत:इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव है । सो समाज को आगे आना होगा तथा बालिका शिक्षा को और बढ़ावा देना होगा । आज युवा वर्ग को आगे आकर इसके विरूद्ध आवाज उठानी होगी और अपने परिवार व समाज के लोगों को इस कुप्रथा को खत्‍म करने के लिए जागरूक करना होगा ।

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