Saturday 10 September 2016

दहेज प्रथा

दहेज क्या है?
विवाह के समय माता पिता द्वारा अपनी संपत्ति में से कन्या को कुछ धन, वस्त्र, आभूषण आदि के रूप में देना ही दहेज है। प्राचीन समय में ये प्रथा एक वरदान थी. इससे नये दंपत्ति को नया घर बसाने में हर प्रकार का सामान पहले ही दहेज के रूप में मिल जाता था. माता पिता भी इसे देने में प्रसन्नता का अनुभव करते थे।
dahejपरंतु समय के साथ साथ यह स्थिति उलट गयी. वही दहेज जो पहले वरदान था अभिशाप बन गया है. आज चाहे दहेज माता पिता के सामर्थ्य में हो ना हो, जुटाना ही पड़ता है। कई बार तो विवाह के लिए लिया गया क़र्ज़ सारी उमर नहीं चुकता तथा वर पक्ष भी उस धन का प्रयोग व्यर्थ के दिखावे में खर्च कर उसका नाश कर देता है। इसका परिणाम यह निकला कि विवाह जैसा पवित्र संस्कार कलुषित बन गया, कन्यायें माता पिता पर बोझ बन गयीं और उनका जन्म दुर्भाग्यशाली हो गया, पिता की असमर्थता पर कन्यायें आत्महत्या तक पर उतारू हो गयीं।
यदि हम आज ठंडे मन से इस समस्या पर विचार करें तो आज दहेज की कोई आवयशकता नहीं है। आज क़ानून द्वारा पुत्री को पिता की संपत्ति का अधिकार मिल सकता है। आज लड़कियाँ लड़कों से अधिक पढ़ लिख रही है, और उनसे बड़ी पद्वियाँ प्राप्त कर रही हैं। अत: उनका जीवन भी किसी प्रकार का भार नहीं है।
इस प्रथा का भयाव्ह पक्ष तो वह है जब वार पक्ष विवाह से पहले हि एक बड़ी राशि कि माँग करता है, वह कार या स्कूटर कि माँग करता है जो पूरी ना होने पर वह विवाह से इनकार कर देता है, कई अवस्थाओं में तो दरवाजे पर आई बारात दहेज पूरा ना मिलने पर वापिस चली जाती है, या विवाह के पश्चात कन्या को कम दहेज लाने के कारण सताया जाता है।
ऐसी भयाव्ह स्थिति कई दिनों तक नहीं चल सकती थी। अत: सरकार को इसके विरुध कदम उठाने पड़े, आज समाज में जागृति आ रही है और कोई भी समझदार व्यक्ति ऐसी स्थिति में मूक दर्शक नहीं रह सकता, सरकार ने क़ानूनी रूप से दहेज लेने-देने पर प्रतिबंध लगा दिया है, अधिक संख्या में बारात लाना भी अपराध है, दहेज के लिए कन्या को सताना भी अपराध है।
परंतु इतना होने पर भी पर्दे के पीछे दहेज चल ही रहा है। उसमे कोई कमी नहीं हुई है, इसके लिया नवयुवकों को स्वयं आगे आकर इस लानत से छुटकारा पाना होगा, साथ ही समाज को भी प्रचार द्वारा अपनी मान्यताए बदलकर दहेज के लोभियों को कुदृष्टि से देखकर अपमानित करना चाहिए, अभी तक इस विशय में बहुत कुछ करना अभी शेष है, इसका अंत तो युध स्तर पर कार्य करके ही किया जा सकता है।

No comments:

Post a Comment